(Terminology of Accounting)
■ व्यापार (Trade)
लाभ कमाने के उदेश्य से किया गया वस्तुओं का क्रय, विक्रय व्यापार कहलाता है।
- पेशा (Profession)
आय अर्जित करने के लिए किया गया कोई भी कार्य या साधन जिसके लिए पूर्व प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, पेशा कहलाता है।
■ व्यवसाय (Business)
ऐसा कोई वैधानिक कार्य जो आय या लाभ प्राप्त करने के उदेश्य से किया गया हो व्यवसाय कहलाता है। व्यापार व पेशा भी इसी के अन्तरगत आते है।
■ मालिक (Owner)
वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जो व्यापार में आवश्यक पूँजी लगाते हैं व्यापार का संचालन करते हैं व्यापार की जोखिम सहन करते हैं तथा लाभ व हानि के अधिकारी होते हैं वे व्यापार के मालिक कहलाते हैं।
यदि किसी व्यापार का मालिक एक व्यक्ति है तो वह Proprietor कहलाता है। यदि 2 या 2 से अधिक व्यक्ति हैं तो वह Partner कहलाते हैं। और यदि बहुत से लोग मिलकर संगठित रुप से कार्य करते हैं तो Shear Holder कहलाते हैं।
- पूँजी (Capital)
व्यापार का मालिक जो रुपया माल या सम्मपत्ति व्यापार में लगाता है उसे पूँजी कहते हैं। व्यापार में लाभ होने पर पूँजी बढ़ती है और हानि होने पर पूँजी घटती है।
- आहरण (Drawings)
व्यापार का मालिक अपने निजी खर्च के लिये समय-समय पर व्यापार से जो रूपया या माल निकालता है वह उसका आहरण कहलाता है।
■माल (Goods)
माल उस वस्तु को कहते हैं जिसका क्रय-विक्रय या व्यापार किया जाता है, माल के अन्तरगत वस्तुओं के निर्माण हेतु प्राप्त कच्ची सामग्री, अर्ध निर्मित सामग्री, या तैयार वस्तुयें हो सकती है।
■ क्रय (Purchase)
विक्रय के उदेश्य से व्यापार में खरीदा गया माल क्रय या खरीदी कहा जाता है।
व्यापार में माल उधार या नगद खरीदा जा सकता है।
■ विक्रय (Sales)
जो माल बेचा जाता है उसे विक्रय कहते है।
- क्रय वापसी (Purchase Return)
जब खरीदे हुये माल से कुछ माल विभिन्न कारणों से वापस कर दिया जाता है तो उसे क्रय वापसी कहते हैं।
- विक्रय वापसी (Sales Return)
जब बेचे हुये माल का कुछ भाग विभिन्न कारणों से व्यापारी लौटा देता है तो इस
प्रकार की वापसी को विक्रय वापसी कहते हैं।
■ रहतिया (Stock)
किसी भी व्यवसाय में वर्तमान में हमारे पास किसी भी मात्रा में जो माल उपलब्ध है Stock कहालाता है। साल के अन्त में जो माल बिना बिके रह जाता है वह हमारा Closing Stock कहलाता है और अगले साल के पहले दिन वही माल Opening
Stock कहलाता है।
■ दायित्व (Liabilities)
वे सब ऋण जो व्यापार को अन्य व्यक्तियों अथवा अपने मालिक के प्रति चुकाने होते
है, दायित्व कहलाते हैं। ये दायित्व दो प्रकार के होते हैं।
1-स्थायी दायित्व (Long Term/Fixed Liabilities)
ये वो दायित्व हैं जो एक साल से ज्यादा समय के बाद या व्यापार समाप्ति पर
चुकानी होती है, Fixed Liabilities कहलाती है।
2-चालू दायित्व (Short Term/Current Liabilities)
ये वो दायित्व हैं जो एक साल 6 महीने या उससे भी कम समय में चुकानी होती हैं Current Liabilities कहलाती है।
■ सम्पत्ति (Assets)
व्यापार में समस्त वस्तुयें जो व्यापार संचालन में सहायक होती हैं सम्पत्ति कहलाती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं-
1-अचल / स्थायी सम्पत्ति (Fixed Assets)
वे वस्तुयें जो व्यापार को चलाने के लिये स्थायी रूप से खरीदी जाती हैं और जिन्हें बेचने के लिये नही खरीदा जाता है, वे सभी सम्पत्तियाँ स्थायी सम्पत्तियाँ कहलाती है।
2-चल/अस्थायी सम्पत्ति (Current Assets)
ये वे सम्पत्तियाँ हैं जो स्थायी रूप से व्यापार में नहीं रहती हैं। Cash, Bank में जमा धन, Stoke व Debaters तथा वे सभी सम्पत्तियों जो आसानी व शीघ्रता से नगदी में परिवर्तित की जा सके अस्थायी सम्पत्ति कहलाती है।
■ व्यय (Expenses)
माल को उत्पादन व उसे बेचने में जो खर्चे होते हैं. वे Expenses कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-
1- प्रत्यक्ष व्यय- (Direct Expenses)
ये वे खर्चे होते हैं जिन्हे व्यापारी माल खरीदते वक्त करता है, या माल के उत्पादन में करता है। उत्पादन की दशा में कच्चे माल की खरीद से लेकर उसे विक्रय योग्य स्थिति तक लाने में जो खर्चे होते हैं वो Direct Exp. कहलाते हैं।
2-अप्रत्यक्ष व्यय- (Indirect Expenses)
Indirect Exp. वे Exp. होते हैं जिनका सम्बन्ध वस्तु के क्रय या उसके निर्माण से न होकर बल्कि कार्यालय से सम्बन्धित किये गये व्यय से होता है, ऐसे Exp. का प्रभाव विक्रय किये जाने वाले माल के लागत पर बिल्कुल नही होता, ये व्यापार के लाभ को घटा देते हैं।
- राजस्व (Revenue)
Goods व Serves को Market में Sale करने पर उससे जो प्राप्ति होती है, वह Revenue कहलाती है।
■ आय (Income)
Goods व Serves को Market में Sale करने पर उससे जो Revenue होती है उसे
हम Income कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है
1- प्रत्यक्ष आय- (Direct Income)
Direct Income वो Income है जो हमें मुख्य व्यवसाय से मिलती है।
2-अप्रत्यक्ष आय- (Indirect Income)
Indirect Income वो Income है जो हमें मुख्य व्यवसाय से नही मिलती बल्कि Discount, Interest से मिलती है, Indirect Income होती है।
■ बट्टा छूट (Discount)
व्यापारी द्वारा अपने ग्राहकों को दी जाने वाली रियायत, छूट या Discount कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है-
1-व्यापारिक बट्टा- (Trade Discount)
व्यापारी माल बेचते समय ग्राहक को माल के मूल्य में कुछ कमीं या बिल की राशि में जो कमीं करता है वह व्यापारिक छूट कहलाती है। यह छूट माल के विक्रय मूल्य में से कुछ निष्चित प्रतिशत के रूप में दी जाती है, इस छूट को बिल में ही कम कर दिया जाता है, उसे Trade Discount कहा जाता है।
2-नगद बट्टा- (Cash Discount)
व्यापारी चलन के अनुसार प्रत्येक ग्राहक को एक निश्चित अवधि में भुगतान करने की सुविधा प्रदान की जाती है, अगर ग्राहक निश्चित अवधि के पहले ही भुगतान कर दे तो उसे कुछ छूट दी जाती है, जिसे Cash Discount कहा जाता है।
यह Discount की प्रतिशत के रूप में दिया जाता हैं।
- डूबत ऋण (Bad Debts)
व्यापारी को उधार बेचे गये माल की पूरी रकम Debaters (देनदार) से प्राप्त हो जाये ये आवश्यक नही है, अतः इस उधार की रकम में से जो वसूल नही हो पाती है उसे व्यापारी का डूबत ऋण कहते है।
■ लेन-देन (Transaction)
व्यापार में माल सम्बन्धी क्रय विक्रय और वस्तुओं का पारस्परिक आदान-प्रदान होता है, ऐसे सभी लेन-देन मुद्रा में होते हैं। यह मुद्रा द्वारा मापे जाते हैं मुद्रा का भुगतान तुरन्त या भविष्य में हो सकता है। व्यापारी द्वारा किये जाने वाले सभी आदान-प्रदान, लेन-देन कहलाते हैं। जब सौदे का तुरन्त भुगतान किया जाता है तब वह नगद लेन-देन (Cash Transaction) कहलाता हैं।
जब भुगतान भविष्य में किया जाता है तो उसे उधार लेन-देन यानी (Credit Transaction) कहते है।
लेन-देन (Cash Transaction) कहलाता हैं।
जब भुगतान भविष्य में किया जाता है तो उसे उधार लेन-देन यानी (Credit Transaction) कहते है।