डीपफेक क्या है?डीपफेक को कैसे पहचानें

डीपफेक क्या है?डीपफेक को कैसे पहचानें

हाल में अभिनेत्री रश्मिका मंदाना का एक डीपफेक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें किसी और के चेहरे पर उनका चेहरा लगा दिया गया। एआइ का कितना दुरुपयोग हो सकता है, उसे इससे समझा जा सकता है। आइए जानते हैं डीपफेक क्या है, इसे कैसे पहचान सकते हैं…

तकनीक की दुनिया में डीपफेक नया नहीं है। इसकी शुरुआत वर्ष 2016 में ही हो गई थी, लेकिन वर्ष 2017 में एक रेडिट यूजर ने इजरायली अभिनेत्री गैल गैडोट का एक डीपफेक वीडियो शेयर किया था, जिसमें उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया था। उस समय इसकी काफी चर्चा हुई थी। हालांकि इसके बाद से डीपफेक का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। अब रश्मिका मंदाना के डीपफेक वीडियो को लेकर बवाल मचा है। वायरल वीडियो इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर जारा पटेल का था, जिसे एडिट करके उनके चेहरे को रश्मिका मंदाना के चेहरे से बदल दिया गया। इस वीडियो के सामने आने के बाद केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि डीपफेक वीडियो गलत सूचना का सबसे खतरनाक रूप है।

क्या है डीपफेक :

डीपफेक में किसी रियल वीडियो में दूसरे का चेहरा लगा दिया जाता है। इसमें मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया जाता है। रश्मिका का वीडियो भी इसी तरीके से बनाया गया है। बता दें कि डीपफेक में वीडियो कुछ इस तरह से तैयार किए जाते हैं कि आवाज और हावभाव बिल्कुल वास्तविक लगते हैं। पहली नजर में पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वीडियो असली है या नकली। इंटरनेट मीडिया पर आपको इस तरह के बहुत सारे वीडियो मिल जाएंगे। हालांकि, अच्छी तरह बनाए गए डीपफेक वीडियो और मूल वीडियो में बहुत अधिक फर्क नहीं होता है, मगर डीपफेक वीडियो की पहचान की जा सकती है।

डीपफेक को कैसे पहचानें :

डीपफेक वीडियो पहली नजर में वास्तविक लग सकते हैं,
लेकिन ध्यान से देखने पर पता चल जाएगा कि वीडियो फेक है। तकनीक का उपयोग करते हुए नकली वीडियो बनाना आसान काम नहीं होता है। डीपफेक बनाने वाले चेहरे का कलर और लाइटिंग ठीक उसी तरह से नहीं बना सकते हैं, जैसा कि मूल वीडियो में होता है, लेकिन एआइ की बढ़ती ताकत ने इस अंतर को लगभग मिटा दिया है। आमतौर पर जब दूसरे का चेहरा हटाकर उसका डीपफेक तैयार किया जाता है, तब कलर पूरी तरह से नहीं मिल पाते। इसके अलावा, चेहरे का हावभाव, आंखों की मूवमेंट और बाडी स्टाइल पर ध्यान देकर भी डीपफेक वीडियो को पहचाना जा सकता है। डीपफेक वीडियो का आडियो हमेशा एआइ के माध्यम से तैयार किया जाता है, इसलिए अक्सर लिपसिंकिंग में आपको गलतियां दिख जाएंगी। खासकर जब वीडियो में मौजूद व्यक्ति मूल भाषा के अलावा किसी अन्य भाषा में बोल रहा होता है, तो आडियो को पकड़ा जा सकता है। बता दें कि एआइ तकनीक काफी हद तक चीजों की नकल तो कर लेती है, मगर पूरी तरह से नहीं ।

फेक वीडियो बनाना आसान तो नहीं है, लेकिन यह अब ज्यादा मुश्किल भी नहीं रह गया है। ऐसे एआइ टूल और साफ्टवेयर आ गए हैं, जिनकी मदद से वीडियो से फेस को मार्फ कर दिया जाता है। इसे रोकना भी अब आसान नहीं है। हालांकि कंपनियों द्वारा कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी वे काफी नहीं है। फेसबुक ने फेक कंटेंट को रोकने के लिए सख्त कदम उठाया है। यूट्यूब भी डीपफेक की शिकायत मिलने पर उसे हटा देता है, लेकिन इंटरनेट के इस युग में इसे पूरी तरह से रोकना मुश्किल है। सरकार भी सख्त है। डीपफेक वीडियो बनाने और साझा करने पर आइपीसी की धारा के तहत कार्रवाई हो सकती है। इतना ही नहीं, यदि किसी की छवि खराब होती है तो मानहानि का दावा भी किया जा सकता है। इस मामले में इंटरनेट मीडिया कंपनियों के खिलाफ भी आइटी नियमों के तहत कार्रवाई हो सकती है। शिकायत मिलने के 36 घंटे के अंदर इंटरनेट मीडिया कंपनियों को अपने प्लेटफार्म से इस तरह के कंटेंट को हटाना होता है।

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